देश के शांत और खूबसूरत शहरों में शुमार राजा भोज की नगरी भोपाल का व्यस्ततम इलाका, एमपी नगर. किरायानामा बनवाने के लिए यहां एक स्टांप की दुकान पर रुकी, स्कूटी पार्क की और अंदर दुकान की ओर बढ़ गई. सामने एक महिला बैठी थी, जिसे देखकर खयाल आया कि ओह.. जल्दी आना हो गया. शायद स्टाफ अभी आया नहीं होगा. कौन टाइप करेगा, मेरा काम हो पायेगा कि नहीं. जाहिरा तौर पर एक महिला स्टांप, टाइपिंग सरीखे कामों को करती प्रोफेशनल दुकानों पर नहीं दिखती, इसीलिए ये खयाल जेहन में पहली नजर में आया. जैसे ही मोहतरमा से बात हुई, कि किरायानामा बनवाना है, बड़े ही प्रोफेशनल अंदाज में उन्होंने कहा- ''कहीं सरकारी कामकाज में यूज लेना है तो, 800 रुपए लगेंगे. किराये के मुताबिक स्टांप ड्यूटी देनी होगी. और अगर आपके और किरायेदार के बीच एग्रीमेंट के लिहाज से बनना है तो 100 रुपए के स्टांप पर किरायानामा बनेगा. जिसके 300 रुपए लगेंगे.''
मैडम का प्रोफेशनल अंदाज पसंद आया. इसे सुनकर कहीं नहीं लगा कि डिस्काउंट की बात की जाए. क्योंकि ढेरों कंप्यूटर जॉब वर्क वाले और कोर्ट, डवलपमेंट अथोरिटी या ट्रांस्पोर्ट डिपार्टमेंट के बाहर हर पेज, हर शब्द की टाइपिंग के जाल में फांसकर इससे कहीं ज्यादा भी रुपया ऐंठ ही लेते हैं. बहरहाल.. डीटेल बतानी शुरू हुई और किरायानामा बनना शुरू हुआ. बात ही बात में बातें होने लगीं. 'काफिल आज़िर ने गज़ल लिखी है, जिसे जगजीत ने गाया है, बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी...' यहां भी बात इतनी दूर जाएगी, रत्ती भर भी एहसास न था. अब इस किरायानामा बनाने वाली महिला के बारे में सुनिए, आपको अच्छा लगेगा, एक नज़ीर मिलेगी.. और लगेगा कि लोग क्या-क्या संघर्ष कर रहे हैं, कैसे कर रहे हैं, हम खामखां में ही अपने दुखड़े रोने लगते हैं.
सटासट टाइपिंग कर रही बबीता यादव पहले बबीता शर्मा थीं. कम उम्र में ही मोहब्बत हो गई. शादी करनी चाही. घरवाले साथ नहीं थे, तो प्रेम विवाह किया. उपनाम शर्मा से यादव हो गया. अभी बसंती बहार ढंग से देखी भी न थी कि एक एक्सीडेंट में इनकी पति चल बसे. 24 साल की उम्र में ये आघात. लव मैरिज करने वाली ये महिला अब अकेली.. और साथ में एक बच्चा. कोई रोशनी की किरण नहीं, बस अंधकार ही अंधकार.. नाती रिश्तेदार.. घर परिवार वालों का बहुत जिक्र यहां नहीं, क्योंकि वो तो शादी से ही खफ़ा थे.
किसी की सिफारिश पर किसी ऑफिस पहुंची. वहां पहले दिन काम दिया गया, कंप्यूटर पर टाइप कीजिए. इससे पहले बस हल्का सा कंप्यूटर खोलने बंद करने का अनुभव था. कहने वाले कहते हैं, हिन्दी टाइपिंग इतनी आसान भी नहीं. और पहली बार नौकरी के पहले ही दिन किसी को हिन्दी टाइपिंग के लिए बैठा दिया जाए तो समझिए, मनोबल का चकनाचूर होना लाजमी है. इस लेख को टाइप करते हुए मुझे भी अपने पहले दिन की टाइपिंग याद आ रही है, जब एक-एक अक्षर बाजू वाले से पूछकर टाइप किया जा रहा था. कमोबेश यही आलम बबीता शर्मा उर्फ बबीता यादव के साथ रहा. घंटे भर में एक पहराग्राफ भी टाइप न हो सका. सिफारिश सिफर रही.. साथ में एक टिप्पणी भी मिली- ''इस तरह तो तुम जिंदगी में कभी टाइप नहीं कर पाओगी...'' अंदर की सहमाहट, डर में बदल गई, आत्मबल के टुकड़े हो गए, कुछ कर गुजरने की तमन्ना काफुर हो गई, आंखों से बहते आंसुओं में उम्मीदें कहीं धुल गईं...
लेकिन बबीता ने हार न मानी. बबीता ने कोई और काम भी नहीं चुना. पति की एक दुकान थी, पगड़ी पर ली हुई (जिसका आज भी केस चल रहा है). दुकान पर बैठना और टाइपिंग सीखना शुरू किया. लगीं रही खुद से.. धीरे-धीरे लोग आने लगे.. काम आने लगा.. स्पीड बनने लगी.. टाइपिंग की भी और उम्मीदों की भी. इस रफ्तार के बीच एक जिक्र और लाजमी है. अकेली औरत और लोगों की नजरें. जी हां, ये फिल्मी डायलॉग नहीं, हमारे समाज की हकीकत है. पुरुष हावी समाज में हम उन्हें ही कहां रोक पा रहे हैं, तो नजरें कैसे रोकें. बड़ा आसान था कहीं भी सरेंडर हो जाना और अपने और बच्चे के संघर्षों का अंत कर लेना. पर बबीता ने इस मानसिक और शारीरिक जंग को जीता. लगी रहीं, टाइपिंग में. आज उनकी इलाके में मिसाल दी जाती है. किसी को भी जल्दी से टाइपिंग जॉब करवाना हो तो, बबीता के पास ही आता है.
बबीता का बेटा अब बड़ा हो गया है, कॉलेज में पढ़ रहा है. मां का संघर्ष देख, अब कुछ बड़ा करने की हसरत रखता है. बबिता ने कुछ महीने पहले ही दूसरा विवाह किया है. मांग में सिंदूर फिर से खुशियां लाया है. बधाई के पात्र हैं उनके नये जीवनसाथी, जिन्होंने बबीता के दफ्तर में लगी पहले पति की तस्वीर हटाने की बात भी न सोची. आज भी आप बबीता की कुर्सी के साथ, पहले पति की तस्वीर पायेंगे और कंप्यूटर की-बोर्ड पर ठक ठक करती उंगलियों के साथ उत्साह और जीवट की एक नजीर...
बबीता इतनी महान नहीं, कि उनका जिक्र कहीं किन्ही पन्नों में दर्ज हो, लेकिन उनका जीवट महान है. उनकी लगन प्रेरणादायी है. ऐसी छोटी-छोटी कहानियां, हमारे आस पास की जिजिविषाएं, हमें स्फूर्त बनाती हैं, हमें छद्म दुखों से बाहर आकर लड़ने का हौसला दिलाती हैं. कीप इट अप बबीता, तुम खुद तुम्हारे साथ हो, तुम्हारा हौसला तुम्हारे साथ है.
https://www.facebook.com/JournalistAmitSharma